Brahman Ka Sapna : Panchtantra Moral story in Hindi
एक गांव में एक ब्राह्मण रहता था। वह अपने चिंताओं और चिंतन में इतना डूब गया था कि उसको सबकुछ छोड़ देने का मन हो गया। उसकी महीनेभर की कमाई बस इतनी थी कि उसे और उसके परिवार को पेट भरने के लिए भी पर्याप्त नहीं था। वह दूसरे लोगों की देखभाल करने की बजाय अपनी धनभार में और खींचतान लाने में ज्यादा ध्यान देने लगा।
एक दिन, उसे गांव के एक अमीर व्यापारी का घर देखने का मौका मिला। उसने सोचा कि शायद उसकी मदद से उसे कुछ पैसे मिल जाएंगे और उसकी समस्या हल हो जाएगी। वह उस व्यापारी के घर गया और उसे अपनी तकलीफ़ बताई।
व्यापारी: तुम किस किस्म की मदद चाहते हो?
ब्राह्मण: महाशय, मैं बहुत गरीब हूँ और मेरे पास खाने के लिए भी पर्याप्त पैसे नहीं हैं। क्या आप मेरी सहायता कर सकते हैं?
व्यापारी: तुम्हारी इस समस्या का हल तो है, ब्राह्मण। तुम्हें मेहनत करके पैसे कमाने की आवश्यकता है। तुम्हारे पास ज्ञान है, इसे इस्तेमाल करो और अपने भविष्य को सुधारो।
इस बात को सुनकर ब्राह्मण का मनोबल तोड़ गिरा। वह निराश होकर वापस अपने घर की ओर चला गया। रास्ते में उसे एक साधु मिला।
साधु: ब्राह्मण, तुम क्यों इतने उदास हो रहे हो?
ब्राह्मण: महाराज, मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। मैं बहुत परेशान हूँ और कोई मेरी मदद करने को तैयार नहीं है।
साधु: तुम्हें कुछ करने के लिए हमेशा विकल्प मिलेंगे, ब्राह्मण। तुम्हें अपनी संपत्ति को बाँटना चाहिए। जो तुम्हारे पास है, वह दूसरों के लिए उपयोगी हो सकता है।
ब्राह्मण ने साधु के वचनों पर विचार किया और उसे समझ लिया कि उसकी समस्या का हल उसके पास है। वह धन्यवाद करके साधु को छोड़ दिया और अपने घर की ओर लौट आया।
ब्राह्मण (खुद से): साधु जी सही कह रहे थे, मेरी समस्या का हल मेरे पास है। मुझे खुद काम करने की जरूरत है। मैं अपनी धनभार बाँटकर खुद को और दूसरों को सुखी बना सकता हूँ।
ब्राह्मण ने सोचा कि वह अपनी कृषि जामीन के एक टुकड़े को किसान को बेच देगा। फिर उसकी रसोई का सामान और अन्य वस्त्र व्यापारियों को बेचकर पैसे कमा सकता है।
अगले दिन, ब्राह्मण ने अपनी कृषि जामीन का एक टुकड़ा किसान को बेच दिया। वह उसे एक बढ़िया कीमत पर खरीदने को तैयार मिला। फिर उसने अपनी रसोई का सामान और अन्य वस्त्र व्यापारियों को बेचकर अच्छी कमाई की।
इस बीच, उसके घर पर एक छोटा सा नाटक हो रहा था। ब्राह्मण के बच्चे नाटक में हिस्सा ले रहे थे।
छोटा ब्राह्मण बच्चा: पिताजी, मैं नाटक में कितना अच्छा कर रहा हूँ?
ब्राह्मण: बेटा, तुम बहुत अच्छा कर रहे हो। तुम्हारी अदा और भावुकता सबको प्रभावित कर रही है। यदि तुम इसी तरीके से मेहनत करोगे और सच्ची मेहनत के साथ अपने सपनों की प्राप्ति करोगे, तो तुम सफलता की ऊँचाइयों को छू सकोगे।
ब्राह्मण ने देखा कि उसका बच्चा मेहनत करके नाटक में अद्भुत प्रदर्शन कर रहा था। उसे एक महसूस हो रहा था कि उसका खुद की मेहनत और दूसरों की मदद करने में विश्वास करने से उसकी खुद की समस्याएँ हल हो गईं।
ब्राह्मण (खुद से): अब मैं समझ गया हूँ कि सही सोच और इरादे से अपने सपने पूरे किए जा सकते हैं। मैं अब सच्ची मेहनत करूंगा, खुद को खुद के साथ बाँटकर और दूसरों को मदद करके।
इस तरह, ब्राह्मण ने एक सपने से एक संघर्ष करके खुद को और दूसरों को सुखी बना दिया। वह खुद को गर्व महसूस करता था क्योंकि उसने समझा था कि दान देने और मेहनत करके ही वास्तविक सफलता मिलती है।
(सीख : शेख़चिल्ली न बनो)
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमेशा दूसरों की मदद करने में और मेहनत करके अपने सपनों को पूरा करने में विश्वास रखना चाहिए। हमें अपनी समस्याओं का समाधान खुद में ही ढूंढना चाहिए और उसे अपनी मेहनत और सही नीति के साथ प्राप्त करना चाहिए।
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Q. ब्राह्मणों का सपना क्या था?
A. जैसे ही रात हुई, ब्राह्मण अपने बिस्तर पर लेट गया, लेकिन उसकी नजर बर्तन से नहीं हटी। जल्द ही, वह गहरी नींद में सो गया। वह स्वप्न देखने लगा कि बर्तन चावल की दलिया से भर गया है । उसने सपना देखा कि अगर जमीन पर कोई कमी आ जाए, तो वह उसे सौ चाँदी के सिक्कों में बेच सकता है।
Q, ब्राह्मणों की स्वप्न कथा के लेखक कौन है?
A. राहुल गर्ग, ध्रुव गर्ग (कथावाचक) पंचतंत्र वे कहानियाँ हैं जो भारत में प्राचीन काल में युवा राजकुमारों को उन्हें समझदार बनाने के लिए कही जाती थीं